बाइबल

पवित्र बाइबल

बाइबिल में मसीह की कहानी
मसीह की कहानी बताने कलीसिया का अस्तित्व
कलीसिया का इतिहास, बाइबल की इतिहास की निरंतरता
बाइबल की कहानी से हमारा संबंध दर्शना। और यह विश्वास करना कि कलीसिया के लोग कम से कम कलीसिया के प्रारंभिक शक्तियों से परिचित हो, हम यहां पर एक संक्षिप्त रूपरेखा, उसके प्रमुख, विशेषता, घटनाओं और व्यक्तियों का दे रहे है
इतिहास के प्रकाशन के बिना, मसीही राज्य की वर्तमान परिस्थिति को समझना असंभव है। परंतु अंततः कलीसिया की इतिहास की अनभिज्ञता, बाइबल की अनभिज्ञता से कहीं अधिक विस्तृत है।हम विश्वास करते हैं कि लोगों को कलीसिया के इतिहास की सत्यता बताना प्रत्येक सेवक का कर्तव्य है।
"विश्व इतिहास को तीन अवधियों का समझा जाता है"
  रोमी साम्राज्य अवधि: सताव, शहीद,कलीसियाई पिताओ, विरोध, रोमी साम्राज्यय का मसीही कारण।
     मध्यकालीन अवधि पोप की शक्ति का बढ़ाना।
    धर्माधिकरण, मठवाद, इस्लाम, धर्मयुद्ध।

बाइबल में आपका स्वागत है
बाइबल केवल सीखने के लिए ही नहीं? अपितु जीवन यापन करने के लिए है। - लारेन्स ओ. रिचर्ड

क्या आप जानना चाहते हैं कि परमेश्‍वर आपके बारे में क्या सोचता है? या कैसे आपको परमेश्‍वर के बारे में सोचना चाहिए? आप इसे...बाइबल में पा सकते हैं!

बाइबल उसका एक बहुत ही व्यक्तिगत् सन्देश है, जिसने इस ब्रह्माण्ड की रचना की है। क्योंकि यह परमेश्‍वर का जीवित वचन है, इसलिए यह आपके ध्यान को आकर्षित करने से कुछ ज्यादा है। यह आपसे बात करता है। इस तरीके से जो बिल्कुल ही अलौलिक है, जिस वचन को आप आज पढ़ते हैं हो सकता है कि वह सीधे ही आपकी समस्या पर लागू होती हो।
क्योंकि परमेश्‍वर का वचन जीवित, प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है; और प्राण और आत्मा को, और गाँठ गाँठ और गूदे-गूदे को अलग करके आर-पार छेदता है और मन की भावनाओं और विचारों को जाँचता है (इब्रानियों 4:12)।

बाइबल विवरण देती है कि कैसे यह लिखा गया थ
“पवित्रशास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचार-धारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती, क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई, पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे” (1 पतरस 1:20, 21)। ये वचन विशेषरूप से पुराने नियम की भविष्यद्वाणियों के ऊपर लागू होते हैं, परन्तु सम्पूर्ण बाइबल प्रेरित है:“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है...” (2 तीमुथियुस 3:16)।
शब्द प्रेरणा का शाब्दिक अर्थ “परमेश्‍वर-द्वारा-श्वसित” है। परमेश्‍वर के स्वयं के जीवन से, उसके श्वास से, बाइबल के शब्द आए हैं। हो सकता है कि आप अन्य पुस्तकों को भी पढ़ने के लिए प्रेरणादायी होना पा सकते हैं क्योंकि वे बौद्धिक या भावानात्मक रूप से प्रेरित करने वाली होती हैं, परन्तु वे परमेश्‍वर की ओर से आए हुए शब्द नहीं हैं। केवल बाइबल ही प्रेरणाप्रदत्त है।
बाइबल प्रगट करती है कि परमेश्‍वर क्या चाहता है कि आप उसके और उसके जीवन के बारे में क्या जाने। इसमें प्रतिज्ञाएँ हैं: ऐसी बातें हैं जिन्हें परमेश्‍वर कहता है कि वह आपके लिए करेगा। यहाँ पर आपके लिए परमेश्‍वर की कुछ प्रतिज्ञाएँ दी हुई हैं:
परमेश्‍वर आपके जीवन की प्रत्येक बात को आपकी भलाई के लिए उपयोग करेगा ताकि आप मसीह के स्वरूप के अनुरूप ढल जाएँ (रोमियों 8:28, 29)
वह सदैव आपके साथ रहेगा (मत्ती 28:20)
वह आपको उदारता से बुद्धि देगा यदि आप इसकी माँग करेंगे (याकूब 1:5)
वह आपके जीवन की प्रत्येक आवश्यकता का प्रबन्ध करेगा (फिलिप्पियों 4:19)
इससे पहले कि आप उससे माँग करें वह आपकी आवश्यकताओं को जानता है (मत्ती 6:32)
जब आप धन्यवाद के साथ प्रार्थना करते हैं तो उसकी शान्ति आपके पूरे जीवन का संचालन करेगी (फिलिप्पियों 4:4-7)।
अधिकांश पुस्तकों में, आप उनके पृष्ठ एक से आरम्भ करते हुए उत्तमता से सीखते हैं। आप सोचते होंगे कि बाइबल का आपका अध्ययन करने का सबसे सर्वोत्तम स्थान उत्पत्ति पृष्ठ एक है। कुल मिलाकर, उत्पत्ति का अर्थ ही “आरम्भ” है। परन्तु बाइबल कालक्रम के अनुसार प्रबन्ध नहीं की गई है। बाइबल की पुस्तकें श्रेणियों में बाँटी हुई हैं। हो सकता है कि आप बाइबल के पठन् की अनुशंतित की हुई व्यवस्था का पालन करें चाहे जिसे इस लेख के अन्त में दिया गया है। इस व्यवस्था की रूपरेखा इसलिए की गई है कि आपको पवित्रशास्त्र के मुख्य विषयों की समझ प्राप्त हो जाए और आप इसके अधिकांश इतिहास के साथ परिचित हो जाएँ।
बाइबल को समझने की कुँजी मसीह हैं
पुराना नियम उसके आगमन की ओर देखता है। सुसमाचार (मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना) मसीह की पहचान और मिशन को प्रगट करते हैं, और बाकी का नया नियम मसीह में मिले नए जीवन के निहितार्थों का विवरण देते हैं। पुराने नियम को समझने के लिए, आपको नए नियम के साथ आरम्भ करना पड़ेगा।
यीशु ने कहा कि वह बहुतायत का जीवन हमें देने के लिए आया और उसका अनुभव करने के लिए एक भाग उसके वचन को जानना और उसका अनुसरण करना है। यीशु ने कहा, “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” (यूहन्ना 8:31)
यह ऐसा था जैसा कि किसी ने आपके साथ परमेश्‍वर के वचन को बाँटा जिस से हम मसीही विश्‍वासी बन गए हैं। “क्योंकि तुमने नाशवान नहीं पर अविनाशी बीज से, परमेश्‍वर के जीवते और सदा ठहरनेवाले वचन के द्वारा नया जन्म पाया है।” (1 पतरस 1:23) और हम इस तरीके, अर्थात् उसके वचन के द्वारा निरन्तर विकास करते जाते हैं, जिसे वह हमें हमारी खुराक कह कर इंगित करता है। “नये जन्मे हुए बच्चों के समान निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ, क्योंकि तुम ने प्रभु की कृपा का स्वाद चख लिया है।” (1 पतरस 2:2, 3)
पूरा का पूरा भजन संहिता 119 परमेश्‍वर के वचन के अध्ययन करने के मूल्य के बारे में बात करता है। यहाँ इसके लिए कुछ तर्क दिए गए हैं: “मैंने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरूद्ध पाप न करूँ।” (वचन 11) “आहा! मैं तेरी व्यवस्था से कैसी प्रीति रखता हूँ। दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है। तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं। मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूँ, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियों पर लगा है” (वचन 97-99) “तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिए उजियाला है।” (वचन 105)
बाइबल का पठन् अपने मन को सम्मिलित करते हुए, एक बौद्धिक अभ्यास है। परन्तु आत्मिक शिक्षा को समझने और लागू करने के लिए, आपको पवित्रात्मा के मार्गदर्शन की आवश्यकता है। जब आप बाइबल का पठन करते हैं, यह कहते हुए प्रार्थना करें कि पवित्रात्मा इसे आपके लिए स्पष्ट करे कि वह क्या चाहता है कि आप जाने: “परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा” (यूहन्ना 16:13)। अपेक्षा की जाने वाली आत्मा का विकास करें – परमेश्‍वर अपने वचन के द्वारा आपको शिक्षा देना चाहता है। परन्तु अपनी भावनाओं पर निर्भर न रहें। मेरे जीवन में ऐसे कुछ उत्तम बाइबल अध्ययन के समय आए हैं जब मैंने यह निर्णय लिया कि मैं आगे ओर पंद्रह मिनट तक पठन् करता रहूँगा यद्यपि पहले के पंद्रह मिनट “ऊबाऊ” थे।
यदि आपका बाइबल अध्ययन निरन्तर और दैनिक है, तो यह आपके जीवन की आदत हो जाएगी। ध्यान भंग करने वाले स्थानों से परे एक शान्त स्थान को खोजें। सृजनात्मक हो जाएँ, और दिन के किसी ऐसे समय को निकाल लें जब आप बहुत अधिक सचेत होते हैं और परमेश्‍वर के साथ समय व्यतीत करने के लिए सक्षम हैं। स्मरण रखें, आप परमेश्‍वर के साथ सम्बन्ध बनाने की खोज कर रहे हैं और आप उसके साथ वार्तालाप करने के लिए सक्षम होना चाहते हैं। जो कुछ परमेश्‍वर आपको सीखाता है उसके लिखने के लिए एक रोजनामचे को रख लें। लिखना आपके विचारों को संगठित करने में सहायता करता है, यह ऐसा कुछ आपको दे देता है जिस पर आप अध्ययन करने के लिए कुछ महीनों पश्चात् पुन: आ सकते हैं।
परमेश्‍वर उसके साथ व्यतीत किए हुए समय के लिए आपका सम्मान करेगा, और आप स्वयं को विश्‍वास में बढ़ता हुए पाएंगे। यह समय व्यतीत करना मूल्यवान् होगा।

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